अपनी मनचाही चीजों को कैसे पाएं!

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मन की शक्ति 

सद्गुरुः  लोग जीवन में जिस भी चीज की आकांक्षा करते हैं – चाहे वह कारोबार को बढ़ाना हो, कोई घर बनाना हो, या कुछ और हो पहले यह विचार पैदा होता हैः ‘मैं यह चाहता हूँ।’ एक बार जब यह विचार आता है, तब ज्यादातर लोग अपनी ऊर्जा को कार्य के जरिए उस चीज की ओर लगा देते हैं और उसकी ओर काम करना शुरु कर देते हैं। अगर उनका कार्य पर्याप्त प्रभावशाली है, तो उनका विचार एक हकीकत बन जाता है। दुनिया में लोगों के काम करने का यह आम तरीका है। लेकिन वे यह नहीं जानते कि उस विचार को जीवन ऊर्जा के एक खास आयाम से कैसे सशक्त करें। 

अगर आपकी ऊर्जा में भौतिक शरीर से परे थोड़ी गतिशीलता है, और अगर वह गतिशीलता एक सचेतन प्रक्रिया बन जाती है, तो आप एक जगह बैठकर अपनी ऊर्जाओं को कहीं और भेज सकते हैं। लेकिन अगर आप अपनी जीवन ऊर्जाओं पर पर्याप्त महारत हासिल किए बिना ऐसा करते हैं, तो हो सकता है कि आपको पता नहीं हो कि ऊर्जाओं को वापस अपने अंदर कैसे खींचें। इस तरह आप अपना जीवन खो सकते हैं। आप देखेंगे, अगर किसी व्यक्ति की इच्छा एक खास तीव्रता से आगे हो, तो वे हमेशा जवान ही मरते हैं। ज्यादातर लोगों की इच्छाएं अस्थिर होती हैं। उनकी इच्छा आज किसी चीज की होती है, कल किसी दूसरी चीज की होती है – यह बदलती रहती है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की कोई चीज के प्रति बहुत शक्तिशाली इच्छा  है, तो वे जवान ही मर जाते हैं, चाहे वह चीज घटित हो या न हो। खासकर अगर वह साकार हो जाती है, तो वे जवान ही मर जाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अपनी जीवन ऊर्जाओं को बाहर कैसे लगाएं, लेकिन उनके पास पर्याप्त महारत नहीं होती कि वे  उस काम को करने के बाद फिर वापस आ जाएँ।

एकाग्र मन शक्तिशाली होता है

विचार अपने आप में एक स्पंदन और ऊर्जा है। बिना ऊर्जा के आप विचार पैदा नहीं कर सकते। बात बस इतनी है कि चूंकि यह इतने बेतरतीब तरीके से हो रहा है तो शायद इसके पास खुद को अभिव्यक्त करने के लिए जरूरी ऊर्जा नहीं है। आप अपनी विचार प्रक्रिया से इतनी ज्यादा ऊर्जा पैदा कर सकते हैं कि आप किसी को मार भी सकते हैं। जब आपका मन एकाग्र होता है, तो वह एक शक्तिशाली साधन होता है। दुर्भाग्य से, लोगों के साथ यह एकाग्रता ज्यादातर समय एक नकारात्मक तरीके से होती है, सकारात्मक तरीके से नहीं। एक क्रोधित मन और कामातुर मन भी बहुत ज्यादा एकचित्त होते हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृति में, बच्चों को हमेशा चेतावनी दी जाती है, ‘जब तुम गुस्से में हो, तो किसी के लिए कुछ भी नकारात्मक मत कहो,’ क्योंकि अगर आपका मन क्रोध से एकचित्त बन गया है, तो वह खुद को अभिव्यक्त कर सकता है।

चलिए विचार पैदा होने की प्रक्रिया पर गौर करते हैं। क्या आपका विचार सचेतन है या वह बस उन लाखों चीजों का परिणाम है जो आपके मन में चल रही हैं? जब आपका विचार अचेतन होता है, तो ज्यादातर समय वह मानसिक दस्त जैसा होता है। उस पर कोई काबू नहीं रहता। वह बस भटकता रहता है क्योंकि पुरानी सामग्री अंदर भरी है। यह बिलकुल वैसा है – आपके पेट में खराब खाना जितना ज्यादा होगा, उतने ज्यादा आपके दस्त चलते रहेंगे। जब आपको मानसिक दस्त हो रहे हों, तो आप उसे विचार नहीं कह सकते।

अपनी स्लेट को साफ करना

अगर आपको ब्लैकबोर्ड पर लिखना है, तो पहले आपको उसे पोंछकर साफ करना होगा। सिर्फ तभी आप उस पर स्पष्ट लिख पाएंगे। अगर उस पर पहले ही लाखों चीजें लिखी हुई हैं, और आप उस पर कुछ और लिखते हैं, तो कोई पता नहीं लगा सकता कि आपने क्या लिखा है। और कुछ समय बाद आपको भी पता नहीं रहेगा। आपको उस जगह को पहले साफ करना होगा और तब एक विचार को सचेतन रूप से पैदा करना होगा। 

अगर लोगों ने अपनी जगह को साफ कर लिया है और तब वे कोई विचार लाते हैं, तो यह विचार वाकई मायने रखता है क्योंकि वह एक सचेतन प्रक्रिया से पैदा हुआ है। एक बार जब यह विचार इस तरह जारी रहता है और इसे उस स्पष्टता में कायम रखा जाता है, तब उसे ऊर्जा से भरा जा सकता है। अगर आप अपने मन में सचेतन रूप से एक विचार पैदा करते हैं और अगर वह एकाग्र है, तो वह दुनिया में अपना रास्ता खोज लेगा। वह स्वाभाविक रूप से खुद को साकार कर लेगा। और अगर आपके पास अपनी जीवन ऊर्जाओं पर थोड़ा ज्यादा नियंत्रण है, तो आप उसे और परिमार्जित कर सकते हैं।

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